उत्तर प्रदेश के अंतिम पूर्वी छोर पर स्थित बलिया जनपद पतितपावनी गंगा, सरयू तथा तमसा नदी के साथ विभिन्न ताल-तलैया जैसे- सुरहाताल, दह मुड़ियारी ताल, कोइली मोहान ताल, भोइया-मझौली ताल, रेवती दहताल आदि जल स्रोतों की अगाध जलराशि से युक्त उर्वरा मृदा कृषि के अनुकूल समशीतोष्ण जलवायु से सम्पन्न है। इस जनपद का समृद्ध इतिहास इसके परिश्रमी निवासियों की कर्मठता की कहानी कहता है-

बलिया जिले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- बलिया जनपद को ‘भृगु क्षेत्र‘ के नाम से जाना जाता है। महर्षि भृगु की तपोभूमि के रुप में यह विख्यात है। महर्षि भृगु की महिमा का वर्णन करते-करते महर्षि हुये भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भवद्गीता के दसवें अध्याय के 25 वें श्लोक में कहा है कि मैं महर्षियों में भृगु हूँ- ‘महर्षिणां भृगुअहं‘। मान्यतानुसार महर्षि भृगु ने इसी क्षेत्र में ‘भृगु संहिता‘ की रचना की थी और उसे लोक स्वीकृति दिलाने के लिये उनके शिष्य दर्दर मुनि ने जो ऋषियों-महर्षियों की परिषद बुलायी थी, उसी की स्मृति में आज भी ‘ददरी मेला‘ लगता है। रामायण काल में महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान राम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ यहाँ आये थे। वर्तमान सिद्धागर घाट, लखनेश्वरडीह, रामघाट, नगहर, कामेश्वर धाम, सुजायत और भरौली को इनकी लीलाभूमि के रूप में श्री राम सांस्कृतिक शोध संस्थान, दिल्ली ने चिन्ह्ति किया था। वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के तेईसवें अध्याय में इस तथ्य का उल्लेख है। दोआब क्षेत्र मे स्थित इस जनपद के निवासी प्राकृतिक परिस्थितियों से संघर्ष करते हुये अत्यंत जुझारू एवं कर्मठ होते हैं। अन्याय और दमन का विरोध ‘बागी बलिया‘ की रग-रग में है। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम बलिदानी मंगल पाण्डेय का जन्मस्थान बलिया के ही नगवां गांव में है। भारत छोड़ो आन्दोलन के समय बलिया ने अपने विद्रोही, क्रान्तिकारी नेतृत्व और संघर्षशील निवासियों के बल पर दिनांकः 19 अगस्त, 1942 ई0 को ब्रिटिश राज्य से मुक्ति पा ली थी। शेरे-बलिया चित्तू पाण्डेय को स्वाधीन बलिया का जिलाधीश और महानंद मिश्र को यहाँ का पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया था। स्वतंत्रता के पश्चात भी बलिया जनपद ने अपने विद्रोही स्वभाव के कारण भारतीय राजनीति-सामाजिक परिदृश्य में उभरे जनांदोलनों का नेतृत्व किया। सम्पूर्ण क्रान्ति के नायक लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्मभूमि बलिया ही है। इसी प्रकार लोकतांत्रिक राजनीति में विपक्ष की सशक्त आवाज और संसदीय कार्यवाहियों में प्रखर वक्ता के रूप में माने जाने वाले जननायक चन्द्रशेखर की जन्मभूमि भी बलिया है। कभी अपने जुझारु तेवरों के कारण ‘युवातुर्क‘ के रूप में पहचाने गये चन्द्रशेखर जी बाद में प्रधानमंत्री भी रहे पर उन्होंने कभी भी अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया। अपनी सरकार बनाने के लिये किसी भी प्रकार का समझौता करने वाले दलों और साझा सरकारों के इस युग में चन्द्रशेखर जी का एक मामूली सी बात पर प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र राजनीतिक मूल्यों की रक्षा का एक अद्वितीय उदाहरण है।

बलिया का नामकरण- बलिया गजटियर के अनुसार पौराणिक काल में यहाँ महर्षि भृगु के आश्रम में उनके पुत्र शुक्राचार्य द्वारा दानवराज बलि का यज्ञ सम्पन्न कराया गया था। संस्कृत में यज्ञ को याग कहा जाता है जिससे इसका नाम बलियाग पड़ा था जिसका अपभ्रंश बलिया है। कुछ विद्वानों का मत है कि यह बलि राजाओं की राजधानी रहा है। बलिया गजटियर में ही कुछ विद्वानों ने वाल्मीकि आश्रम के बारे में लिखा है जिससे वाल्मीकिया और अपभ्रंश में बलिया नाम पड़ा। इसी गजटियर में बालुकामय भू-भाग से बलिया नाम पड़ने का उल्लेख मिलता है।